[PDF] International Law: Essay on International Law | Hindi | Political Science

Read this essay in Hindi to learn about the top eight sources of international law. The sources are: 1. रीति-रिवाज या रूढ़ियां (Customs) 2. सन्धियां (Treaties) 3. कानून के सामान्य सिद्धान्त (General Principles of Law) 4. न्यायालयों के निर्णय (Judicial Decisions) 5. विद्वान लेखकों के ग्रन्थ (Writings of Publicists) 6. अन्तर्राष्ट्रीय शिष्टाचार (International Comity) and a few other sources.

Essay # 1.  रीति-रिवाज या रूढ़ियां (Customs):

रीति-रिवाज या रूढ़ियां अन्तर्राष्ट्रीय कानून का प्राचीन और मौलिक स्रोत हैं । रीति-रिवाज से हमारा अभिप्राय ऐसे नियमों से है जो एक लम्बी ऐतिहासिक प्रक्रिया के बाद विकसित होते हैं तथा जिन्हें राष्ट्रों के समाज ने स्वीकार कर लिया है । अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहार की परम्पराएं विभिन्न राज्यों द्वारा अनिवार्य समझी जाने पर ही परम्परा बन जाती है ।

अन्तर्राष्ट्रीय कानून में रिवाजों का सम्मान तथा पालन इसलिए किया जाता है कि इस क्षेत्र में कानूननिर्मात्री संस्थाओं का अभाव है तथा राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का निरूपण परिपाटियों के जरिए किया जाता है । इसके पूर्व कि रीति-रिवाज अन्तर्राष्ट्रीय कानून का रूप ग्रहण करें दो बातों की आवश्यकता है ।

पहले तो यह देखना पड़ेगा कि प्रथा का प्रयोग अनेक बार हुआ हो और इस प्रकार वह मान्य हो गयी हो । दूसरी बात भावना सम्बन्धी है । अमुक प्रकार का व्यवहार बार-बार होने पर विश्वास प्रबल हो जाता है कि भविष्य में भी उसी प्रकार वह मान्य होगा ।

रिवाजी कानून की अनेक कमजोरियां हैं । रिवाजी कानून का पालन करने के लिए किसी राज्य को बाध्य नहीं किया जा सकता । रिवाज बड़े अस्पष्ट तथा धुंधले होते हैं । ऐसी स्थिति में इनका आदर व सम्मान कम होता है ।

Essay # 2.  सन्धियां (Treaties):

सन्धियों को अन्तर्राष्ट्रीय कानून का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत माना जाता है । ओपेनहीम के अनुसार- ”अन्तर्राष्ट्रीय सन्धियां ऐसे समझौते हैं जो राज्यों अथवा राज्यों के संगठनों के मध्य किए जाते हैं और कानूनी अधिकार तथा कर्तव्य उत्पत्र करते हैं ।”

सन्धियां मुख्यत: दो प्रकार की होती हैं । कुछ में तो ऐसी शर्तें होती हैं जो सर्वसाधारण के लिए विधि का रूप ग्रहण करती हैं । दूसरे प्रकार की सन्धि सन्धि करने वाले राष्ट्रों से सम्बन्ध रखती हें और उनके लिए ही मान्य होती हैं । ऐसी सथिया आपस के समझौते के रूप मैं होती हैं ।

सिर्फ पहले प्रकार की सन्धियां, जिनका सन्धि वाले राष्ट्रों से ही सम्बन्ध नहीं रहता परन्तु सब राष्ट्रों से होता है अन्तर्राष्ट्रीय विधि का आधार हो सकती हैं । इस प्रकार की सन्धियां 1864 और 1914 के बीच हुईं । रिवाजों की तुलना में सन्धियों का अन्तर्राष्ट्रीय कानून के निर्माण में विशेष महत्व है । सन्धियां लिखित होती हैं, अत: रिवाजों की अपेक्षा अधिक प्रामाणिक मानी जाती हैं । रिवाजों की अपेक्षा सन्धियों को न्यायालय अधिक आदर की दृष्टि से देखते हैं ।

Essay # 3.  कानून के सामान्य सिद्धान्त (General Principles of Law):

अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि के अनुच्छेद 38 में सभ्य राष्ट्रों द्वारा मान्य सामान्य सिद्धान्तों को अन्तर्राष्ट्रीय कानून के स्रोतों में स्थान दिया गया है । कानून के सामान्य नियम औचित्य विवेक एवं बुद्धि पर आधारित होते हैं । जहां रिवाजों प्रथाओं तथा सन्धियों का अभाव होता है वहां न्यायाधीश सामान्य सिद्धान्तों की भावना से निर्णय करते हैं ।

ब्रियली के अनुसार- “कानून के सामान्य सिद्धान्तों को उस समय अपनाया जाना चाहिए जब किसी विवाद के समय उपलब्ध अन्तर्राष्ट्रीय कानून कोई मदद न कर सकें ।” कानून के सामान्य सिद्धान्त को अन्तर्राष्ट्रीय कानून का गौण स्रोत ही मानना  चाहिए । इनका आधार नैतिकता और न्याय की विषयगत धारणाएं हैं जिनको कानून नहीं माना जा सकता है ।

Essay # < /b>4. न्यायालयों के निर्णय (Judicial Decisions):

न्यायालयों के निर्णय अन्तर्राष्ट्रीय कानून का गौण स्रोत होते हैं । अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय की संविधि विधान के अनुच्छेद 38 में यह निर्देशित किया गया है कि कानून के नियमों को निर्धारित करने के लिए न्यायाधिकरण के न्यायिक निर्णय सहायक साधनों के रूप में हैं ।

यद्यपि न्यायिक निर्णयों को बाध्यकारी नहीं माना जा सकता किन्तु फिर भी इनमें दोनों पक्षों के विख्यात कानूनशाली सभी दृष्टियों से विवादग्रस्त प्रश्न की मीमांसा करते हैं । इन्हें सुनने वाले न्यायाधीश भी विख्यात विद्वान होते हैं ।

ऐसी स्थिति में ये निर्णय असाधारण महत्व के बन जाते हैं ।

स्टार्क के अनुसार इन निर्णयों से अन्तर्राष्ट्रीय कानून की निम्न स्थितियों का विकास हुआ है:

i. राज्य का उत्तराधिकार,

ii. प्रादेशिक प्रभुता,

iii. तटस्थता, राज्य का क्षेत्राधिकार आदि ।

Essay # 5.  विद्वान लेखकों के ग्रन्थ (Writings of Publicists):

अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय के विधान की धारा 38 में स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है कि भिन्न-भिन्न राष्ट्रों के प्रमुख विधिवेत्ताओं के उपदेश अन्तर्राष्ट्रीय विधि में कानून के रूप में प्रयुक्त होंगे । ऐसे लेखकों के लेख अपनी वैज्ञानिक योग्यता अथवा गुण के अतिरिक्त तुलनात्मक दृष्टि में राज्यों के कार्यों की वैधानिक दृष्टि से छानबीन करते है और महत्वपूर्ण निर्णय देते हैं । 

इन लेखकों के लेख स्वतन्त्र रूप से कानून के स्रोत का रूप धारण नहीं करते हैं, परन्तु समय व्यतीत होने पर वे अन्तर्राष्ट्रीय विधि का रूप धारण कर लेते हैं क्योंकि वे विनियुक्त दलीलें प्रयोग करते हैं । ग्रोशियस, वाटेल, लार्ड ब्रन्सली, लैटिमर, लारेन्स, ओपेनहीम, स्टार्क, ब्रेट, ह्वीटन आदि विद्वानों के नाम इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय हैं ।

आरम्भ में अन्तर्राष्ट्रीय विधि का निर्माण विद्वान लेखकों के ही हाथों में था । आज भी जब राज्यों में किसी नियम विशेष के सम्बन्ध में विवाद उपस्थित होता है तब प्रामाणिक ग्रन्थों के विचारों के आधार पर निर्णय का प्रयत्न किया जाता है ।

Essay # 6. अन्तर्राष्ट्रीय शिष्टाचार (International Comity):

ओपेनहीम के अनुसार, राष्ट्रीय शिष्टाचार ने भी अन्तर्राष्ट्रीय विधि का विकास किया है । पारस्परिक व्यवहार में राष्ट्र शिष्टाचार तथा सद्‌भावना सम्बन्धी रीति-रिवाजों को बाध्यकारी समझते हैं । इस प्रकार के अन्तर्राष्ट्रीय नियम विधि नहीं हैं बल्कि शिष्टाचार की विधि हैं ।

यद्यपि अन्तर्राष्ट्रीय शिष्टाचार अन्तर्राष्ट्रीय विधि का स्रोत नहीं है, तथा पहले जिसे अन्तर्राष्ट्रीय शिष्टाचार समझा जाता था उसे अब अन्तर्राष्ट्रीय विधि समझा जाता  है । राष्ट्रों के शिष्टाचार को रीति-रिवाज नहीं समझना चाहिए । कूटनीतिक प्रतिनिधि राजदूत विभिन्न देशों में चुंगी तथा आय शुल्क से मुक्त होते हैं । ऐसा अन्तर्राष्ट्रीय शिष्टाचार के कारण ही होता है ।

Essay # 7. अपने अधिकारियों के पथ-प्रदर्शन के लिए राज्यों के आदेश (State Papers):

राजनीतिज्ञों की घोषणाएं विधिवेत्ताओं के परामर्श जो वे समय-समय पर अपने राज्य की सरकार को देते हैं अथवा अन्य राज्यों से सम्बन्धित कागजात के विषय में देते हैं तथा जो अन्तर्राष्ट्रीय दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं उनको भी अन्तर्राष्ट्रीय व्यवहार में प्रयुक्त किया जाता है क्योंकि ये घोषणाएं और परामर्श अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के समझे जाते हैं ।

विभिन्न राज्यों द्वारा आपस में जो पत्र-व्यवहार किया जाता है उसे श्वेत नीले या लाल रंगों के आवरण से युत्ह पुस्तकों में प्रकाशित किया जाता है । उदाहरण के लिए साझा बाजार में प्रवेश हेतु किए गए प्रयासों को
ब्रिटिश सरकार ने श्वेत पत्र के रूप में प्रकाशित किया ।

Essay # 8. तर्क (Reason):

जब किसी विवाद या नवीन परिस्थिति के लिए कोई नियम नहीं होता तो विधिवेत्ताओं द्वारा तर्क प्रणाली के आधार पर प्रश्नों को सुलझाया जाता है । यहां तर्क का अर्थ किसी बुद्धिशील व्यक्ति के तर्क से नहीं वरन् न्यायिक तर्क से है । कानून का यह सर्वथा उचित स्रोत माना जाता है और इसे अन्तर्राष्ट्रीय न्यायाधिकरणों के निर्णयों में प्रयुक्त किया जाता है ।

निष्कर्षत:

स्टार्क के शब्दों में- “कई बार न्यायालयों के समुख ऐसे प्रश्न आते हैं, जिनके सम्बन्ध में अन्तर्राष्ट्रीय कानून के सन्धियों वाले या परम्परागत आधार के नियमों का नितान्त अभाव होता है । इस अवस्था में अन्तर्राष्ट्रीय विधिशास्त्रियों की सम्मतियों और ग्रन्थों का महत्व बहुत बढ़ जाता है ।”

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