Read this article in Hindi to learn about:- 1. Principle of Hierarchy Explained 2. Characteristics of Hierarchy System 3. Types 4. Advantages 5. Disadvantages.
Contents:
- पदसोपान कार्यप्रणाली का स्पष्टीकरण (Principle of Hierarchy Explained)
- पदसोपान प्रणाली की विशेषताएँ (Characteristics of Hierarchy System)
- पदसोपान प्रणालियों के प्रकार (Types of Hierarchy System)
- पदसोपान प्रणाली के लाभ (Advantages of Hierarchy System)
- पदसोपान प्रणाली की हानियाँ (Disadvantages of Hierarchy System)
1. पदसोपान कार्यप्रणाली का स्पष्टीकरण (Principle of Hierarchy Explained):
पदसोपान वाले संगठन और उसकी कार्यप्रणाली को निम्नवत् स्पष्ट किया जा सकता है:
संगठन के अध्यक्ष ‘अ’ हैं । ‘क’ इनके अधीनस्थ कर्मचारी हैं जिनके अधीन ‘ख’ है जो ‘क’ के माध्यम से ‘अ’ के भी अधीन है । इसी प्रकार ‘ग’ यद्यपि ‘ख’ के तात्कालिक अधीनस्थ हैं, किन्तु ‘ख’ के माध्यम से ‘क’ और ‘अ’ के भी अधीन है । यही स्थिति दूसरे पक्ष अर्थात् ‘च’, ‘छ’, ‘ज’ एवं ‘झ’ की है । यदि अध्यक्ष ‘अ’ कोई आदेश ‘घ’ को देना चाहते हैं तो वह ‘क’ ‘ख’ और ‘ग’ से होता हुआ ‘घ’ तक पहुँचेगा ।
यदि ‘घ’ कोई सुझाव ‘झ’ को देना चाहते हैं तो पहले वह सुझाव ‘ग’, ‘ख’, ‘क’ से होता हुआ ‘अ’ तक पहुँचेगा तदुपरान्त ‘च’, ‘छ’, ‘ज’ से होता हुआ ‘झ’ तक पहुँचेगा । यही प्रक्रिया ‘उचित मार्ग द्वारा’ (Through Proper Channel) है ।
2. पदसोपान प्रणाली की विशेषताएँ (Characteristics of Hierarchy System):
पदसोपान प्रणाली की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
(i) पदसोपानीय संगठन पिरामिड के आकार का होता है इसमें प्रत्येक व्यक्ति की एक विशिष्ट पहचान होती है । यह श्रेणीबद्ध रूप में एक व्यवस्थित संगठन है ।
(ii) संगठन के शीर्ष पर विभागाध्यक्ष या शीर्षस्थ अधिकारी होता है । सर्वोच्च सत्ता का केन्द्र वही होता है ।
(iii) संगठन को कार्य के आधार पर विभिन्न इकाइयों में विभक्त किया जाता है ।
(iv) संगठन में उत्तरदायित्व का बँटवारा पदाधिकारियों की कार्यकुशलता के आधार पर किया जाता है ।
(v) संगठन में सत्ता, आदेश, नियन्त्रण व उत्तरदायित्व एक-एक स्तर से गुजरते हैं । सत्ता, आदेश व नियन्त्रण का संचरण ऊपर से नीचे की ओर होता है, जबकि उत्तरदायित्व का प्रवाह निम्न से उच्च स्तर की ओर होता है ।
(vi) ‘आदेश की एकता’ के नियम का पालन किया जाता है प्रत्येक अधिकारी अपने से उच्च अधिकारी से आदेश प्राप्त करता है तथा उसी के प्रति उत्तरदायी रहता है ।
(vii) शीर्षस्थ अधिकारी के पास कार्यभार नहीं होता है क्योंकि अधिकारों व दायित्वों का वितरण विभिन्न स्तरों पर कर दिया जाता है ।
(viii) संगठन की सभी इकाइयाँ परस्पर व एकीकृत होती हैं ।
(ix) संगठन की विभिन्न इकाइयों में समन्वय बना रहता है ।
3. पदसोपान प्रणालियों के प्रकार (Types of Hierarchy System):
पिफनर व शेरवुड ने पदसोपान प्रणालियों के निम्नलिखित चार प्रकार बताए हैं:
(i) कार्य आधारित पदसोपान (Job Task Based Hierarchy):
इसमें प्रत्येक कर्मचारी का स्थान उसके द्वारा सम्पन्न किए जाने वाले कार्यों के अनुसार निर्धारित होता है । अधिक अधिकारों से युक्त व्यक्तियों की स्थिति उच्च मानी जाती है । इस व्यवस्था में कार्योंकी प्रकृति और विशिष्टता के अनुरूप ही उत्तर दायित्व जुड़ा होता है ।
सर्वाधिक विशिष्ट कार्यों का सम्पादित करने वाला सोपान के सर्वोच्च स्तर पर होता है । समान कार्य के लिए समान वेतन का नियम होता है । एक ही प्रकार के कार्य को करने वाला व्यक्ति अनुभवी होता है जिससे कि कार्यकुशलता में वृद्धि होती है कार्य सीखने में समय व्यय नहीं करना पड़ता है ।
(ii) पद आधारित पदसोपान (Rank Based Hierarchy):
पदसोपान की इस प्रणाली में व्यक्तियों की स्थिति उ
नके कार्यों व उत्तरदायित्वों के आधार पर नहीं वरन् पद द्वारा निर्धारित होती है । यह व्यवस्था व्यक्ति के सार, वेतन एवं विशेष अधिकारों की ओर सकेत करती है । उदाहरणार्थ- सेना के क्षेत्र में यही पद्धति अपनाई जाती है सैनिक अधिकारियों के नियुक्ति स्थल बदलने के साथ ही उनके कार्यों में भी परिवर्तन हो जाता है । सीमा-स्थलों एवं शान्ति-स्थलों में एक ही पद पर बने रहने के बावजूद उनके कार्य भिन्न-भिन्न होते हैं ।
(iii) कुशलता आधारित पदसोपान (Skill Based Hierarchy):
यह संगठन योग्यता एवं दक्षता के आधार पर निर्मित किया जाता है । एक निश्चित समय में निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति में कोई व्यक्ति कितना सक्षम है, उसी के आधार पर उसकी नियुक्ति की जाती है । योग्यता व कुशलता के आधार पर ही कर्मचारियों की श्रेणीबद्धता रहती है । उदाहरणार्थ- एक औद्योगिक संगठन में शीर्ष पर अनुसन्धानकर्ता वैज्ञानिक होते हैं उससे निम्न स्तरों पर क्रमश: उत्पादन इंजीनियर, प्रबन्ध इंजीनियर, अनेक कार्यवाहक विशेषज्ञ होते हैं ।
(iv) वेतन आधारित पदसोपान (Pay Based Hierarchy):
इस प्रणाली में सर्वाधिक वेतन पाने वाला व्यक्ति सर्वोच्च शिखर पर होता है तथा निम्नतम स्तर पर सबसे कम वेतन पाने वाला व्यक्ति होता है प्रशिक्षण व अनुभव का निर्धारण भी वेतन के आधार पर होता है ।
4. पदसोपान प्रणाली के लाभ (Advantages of Hierarchy System):
पदसोपान प्रणाली निम्नलिखित दृष्टियों से लाभप्रद है:
(i) संगठनात्मक एकता (Organization Unity):
पदसोपानीय प्रणाली में मुख्य कार्यपालिका, पदाधिकारी एवं कर्मचारी परस्पर एक जंजीर की कड़ियों की भांति जुड़े रहते हैं । डॉ. एम. पी. शर्मा के अनुसार- ”यह एक धागा है जिसके द्वारा विभिन्न हिस्से एक साथ सिले जाते हैं ।”
पदसोपानीय प्रणाली की संगठनात्मक एकता पर प्रकाश डालते हुए मूने लिखते हैं- ”क्रमिक प्रक्रिया के सिद्धान्त का सबसे बड़ा लाभ यह है कि वह विभिन्न विभागों को जोड़ने वाला एक यन्त्र है । वह संगठन के लिए उसी प्रकार आवश्यक है जिस प्रकार किसी भवन के ढाँचे के लिए सीमेन्ट ।”
(ii) कर्मचारियों को अनुभव प्राप्त करने की सुविधा (Convenience of Gaining Experience by Employees):
पदसोपान प्रणाली अधिकार व कर्त्तव्यों के विभाजन पर आधारित है । इसमें प्रत्येक स्तर पर अधिकारियों व कर्मचारियों को अपने अधिकारों व शक्तियों के उपयोग का अवसर प्राप्त होता है जिससे कि वे अपने कार्य में दक्षता व अनुभव प्राप्त करते जाते हैं ।
(iii) आदेश की एकता (Unity of Commands):
पदसोपान प्रणाली में ‘आदेश की एकता’ के सिद्धान्त को अपनाया जाता है । आदेश का संचरण ऊपर से नीचे की ओर क्रमानुसार होता है । प्रत्येक व्यक्ति एक ही पदाधिकारी के आदेशों का पालन करता है तथा उसी के प्रति उत्तरदायी होता है । इससे संगठन का कार्य सुचारु रूप से चलता है ।
(iv) उचित मार्ग द्वारा कार्य (Work through Proper Channel):
पदसोपान प्रणाली में प्रत्येक पदाधिकारी अपने से तात्कालिक उच्च पदाधिकारी की देखरेख में कार्य करता है तथा उसी के प्रति उत्तरदायी रहता है प्रत्येक क्रिया को सभी स्तरों से गुजरना होता है । इस सिद्धान्त या प्रक्रिया को ‘उचित मार्ग द्वारा’ कहा गया है ।
(v) सर्वोच्च अधिकारी की सुविधा (Convenience for Executive Officer):
पदसोपानीय व्यवस्था में सर्वोच्च अधिकारी को कार्यसंचालन में पर्याप्त सुविधा रहती है । वह अपने अधीनस्थ अधिकारियों को कार्य सम्बन्धी आदेश व निर्देश देता है जिससे कि उसका स्वयं का कार्य भार काफी हल्का हो जाता है । इससे अधिकारी के बहुमूल्य समय की बचत होती है तथा कार्य दक्षतापूर्वक सम्पन्न किया जाता है ।
(vi) पत्र-व्यवहार की सुविधा (Convenient Correspondence):
पदसोपान प्रणाली में पत्र-व्यवहार अथवा सन्देश-प्रेषण उच्च से निम्न अथवा निम्न से उच्च स्त
रों तक उचित मार्ग द्वारा भेजा जाता है । प्रत्येक पदाधिकारी को यह ज्ञात होता है कि उसे पत्र-व्यवहार किस पदाधिकारी से करना है ? इस प्रकार पत्र-व्यवहार की प्रक्रिया सुविधाजनक होती है ।
(vii) समन्वय (Co-Ordination):
इस पद्धति में संगठन की सभी कार्यवाहियाँ निश्चित नियमों के अन्तर्गत सम्पन्न की जाती हैं । इसके अतिरिक्त स्पष्ट कार्य-विभाजन होता है तथा सत्ता व उत्तरदायित्व का संचारण निर्धारित दिशाओं में होता है परिणामस्वरूप संगठन की विभिन्न इकाइयों के मध्य समन्वय बना रहता है ।
5. पदसोपान प्रणाली की हानियाँ (Disadvantages of Hierarchy System):
पदसोपान प्रणाली से होने वाली कतिपय हानियाँ निम्नलिखित हैं:
(i) कार्य-सम्पन्नता में विलम्ब (Delay in Performance of Work):
इस प्रणाली में प्रत्येक आदेश, कार्यवाही, पत्र एवं सन्देश आदि को प्रत्येक स्तर से गुजरना पड़ता है । प्रत्येक स्तर पर सम्बन्धित अधिकारी को कार्यवाही करने में कुछ-न-कुछ समय अवश्य लगता है जिससे कि सम्पूर्ण प्रक्रिया में अनावश्यक विलम्ब होता है ।
(ii) लाल फीताशाही (Red Tapism):
पदसोपान प्रणाली से लाल फीताशाही व नौकरशाही को भी प्रोत्साहन मिलता है । प्रत्येक स्तर पर फाइल बंद पड़ी रहती है अथवा कई बार प्रक्रिया में या कार्य को आगे बढ़ाने में अनुचित व्यवधान डाला जाता है ।
(iii) पदाधिकारियों के मध्य दूरी (Distance between Officers):
पदसोपान प्रणाली का एक दोष यह है कि सर्वोच्च अधिकारी तथा निम्नतर स्तर के अधिकारियों के मध्य पर्याप्त दूरी बनी रहती है तथा उनकी बात या प्रार्थना विभिन्न स्तरों से गुजरने के बाद सर्वोच्च अधिकारी तक पहुँचती है । इस प्रकार प्रत्यक्ष सम्बन्धों का अभाव होने के कारण प्रशासन में ढिलाई की सम्भावना बनी रहती है ।
(iv) अपव्ययता (Extravagancy):
क्रमिक प्रक्रिया में प्रत्येक विभाग को कई स्तरों में विभाजित किया जाता है । एक विभाग के कई भाग होने से धन का अपव्यय होता है । इसके अतिरिक्त, सर्वोच्च पदाधिकारी विभाग के इन विभिन्न स्तरों के निरीक्षण हेतु समय-समय पर समितियाँ नियुक्त करता है जिससे कि धन का अपव्यय होता है ।
दोष दूर करने से सम्बन्धित सुझाव (Suggestions to Remove Demerits):
पदसोपान व्यवस्था का सर्वप्रमुख दोष अत्यधिक विलम्ब को माना गया है तथा इसके निराकरण हेतु अग्रलिखित सुझाव प्रस्तुत किए गए हैं:
(i) पदाधिकारियों का पारस्परिक समझौता (Mutual Agreement among the Officer Bearers):
विलम्ब के दोषों को दूर करने के लिए संगठन के विभिन्न अधिकारी एक-दूसरे से समझौता कर लें तथा कर्मचारियों को परस्पर मिलने की अनुमति प्रदान कर दें । इससे कार्य करने की कुशलता व क्षमता में वृद्धि होगी । इसके लिये निम्नतर अधिकारियों का विश्वसनीय होना आवश्यक है ।
(ii) सत्ता रूपी तटों के मध्य पुल-निर्माण (Bridging between Coasts of Authority):
पदसोपान व्यवस्था में निहित दोषों को दूर करने के लिए ‘फेयोल’ ने एक पुल-व्यवस्था प्रस्तुत की जिसे ‘गेंगप्लांक’ (Gangplank) का नाम दिया गया इसका अर्थ ‘स्तरों को लाँघना’ (Level Jumping) है ।
यह पुल दो प्रकार का हो सकता है:
(a) आड़ा (Horizontal) तथा
(b) तिरछा (Vertical), किन्तु फेयोल की यह पुल-व्यवस्था किन्हीं विशेष परिस्थितियों में ही लागू हो सकती है ।
कतिपय दोषों के बावजूद पदसोपान पद्धति के लाभों अथवा महत्व को नकारा नहीं जा सकता है । संगठन की सफलता के लिए इसे लागू करना आवश्यक है । सामान्य परिस्थितियों में पदसोपान प्रणाली को यथावत् अपनाना उपयुक्त होगा किन्तु किन्हीं विशेष परिस्थितियों में पुल निर्माण के द्वारा इस पद्धति को लागू करना औचित्यपूर्ण सिद्ध होगा ।